Wednesday 13 February 2013

कुष्मांड / कुम्हड़ा


श्रेष्ठ गुणों से सम्पन कुष्मांड (कुम्हड़ा या कददू)

शीत ऋतु में कुम्हड़े के फल परिपक्व हो जाते है | पके फल मधुर,
स्निग्ध, शीतल, त्रिदोषहर (विशेषत: पिक्तशामक), बुधि को मेधावी
बनानेवाले, ह्रदय के लिए हितकर, बलवर्धक, शुक्रवर्धक व विषनाशक
है |

कुम्हड़ा मस्तिष्क को बल व शांति प्रदान करता है | यह निद्राजनक
है | अत: अनेक मनोविकार जैसे उन्माद (schizophrenia), मिर्गी
(epilepsy), स्मृति-ह्रास, अनिद्रा, क्रोध, विभ्रम, उद्वेग, मानसिक
अवसाद (depression), असंतुलन तथा मस्तिष्क की दुर्बलता में
अत्यंत लाभदायी है | यह धारणाशक्ति को बढ़ाकर बुद्धि को स्थिर
करता है | इससे ज्ञान-धारण (ज्ञान संचय) करने की बुद्धि की
क्षमता बढती है | चंचलता, चिडचिडापन, अनिद्रा आदि दूर होकर मन
शांत हो जाता है |

 कुम्हड़ा रक्तवाहिनियों व ह्रदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाता
है | रक्त का प्रसादन (उतम रक्त का निर्माण) करता है | वायु व
मल का निस्सारण कर कब्ज को दूर करता है | शीतल (कफप्रधान)
व रक्तस्तंभक गुणों से नाक, योनी, गुदा, मूत्र आदि द्वारा होनेवाले
रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है | पित्तप्रधान रोग जैसे
आतंरिक जलन, अत्यधिक प्यास, अम्लपित (एसिडिटी), बवासीर,
पुराना बुखार आदि में कुम्हडे का रस, सब्जी, अवलेह (कुष्मांडावलेह)
उपयोगी है |

क्षयरोग (टी.बी.) में कुम्हडे के सेवन से फेफड़ो के घाव भर जाते हैं
तथा खांसी के साथ रक्त निकलना बंद हो जाता है |बुखार व
जलन शांत हो जाती है, बल बढ़ता है |

 अंग्रेजी दवाइयों तथा रासायनिक खाद द्वारा उगायी गयी सब्जियाँ,
फल और अनाज के सेवन से शरीर में विषेले पदार्थों का संचय होने
लगता है, जो कैंसर के फैलाव का एक मुख्य कारण है | कुम्हडे
और गाय के दूध, दही इत्यादि में ऐसे विषों को नष्ट करने की
शक्ति निहित है |